जिधर भी देखो काश्मीर शमशान सरीखा दिखता था,
जिधर भी देखो काश्मीर शमशान सरीखा दिखता था,
मानवता का नाम वहाँ पर फीका-फीका दिखता था।
मूलनिवासी पंडितों ने वहाँ हैवानीयत को देखा है,
आज भी उनकी आँखों से बहती उस दर्द की रेखा है।
माँ-बहनें बाजारों में निर्वस्त्र दौड़ाई जाती थीं,
जहाँ भी हिंदू दिखता था, तलवार चलाई जाती थी।
मंदिर तोड़े जाते थे, बस्तीयाँ जलाई जाती थीं,
भारत माँ को देकर गाली शान दिखाई जाती थी।
आज भी उसी काश्मीर में भारत माँ शर्मिंदा हैं,
माँ को छलनी करने वाले दैत्य अभी तक जिंदा हैं।
पाकिस्तानी नारे गाते जिनके होंठ नहीं थकते,
जिनको भारत माता की आँखों के आँसू नहीं दिखते।
जो मेरी माता का आँचल नोच रहे हैं फाड़ रहे,
जो रह-रह कर माता के सीने में खंजर गाड़ रहे।
क्यों ना उनके हाथों के टुकड़े सहस्त्र कर डालूँ मैं,
क्यों ना उनको जीवित ही इस धरती में दफ़ना दूँ मैं।